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Babita Manvi

Tragedy

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Babita Manvi

Tragedy

तारे ज़मीन पर

तारे ज़मीन पर

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प्रियजन थे जो हमसे बिछड़े,

बन तारे अम्बर पर बिखरे।


सोचा चलकर देखें धरती,

ईश्वर से कर ली यह विनती।


आए फिर ज़मीन पर तारे,

ख़ुशी खोजने निकले सारे।


हरियाली पर गिरी गाज थी,

मानव की रुक रही साँस थी।


रश्मि गई कैंसर से हार,

मोबाइल टावर वृद्धि अपार।


उसने देखा कुछ तो बदलेगा,

लालच बिसार नर सँवरेगा।


लेकिन सोच ज्यों की त्यों साधो,

बनकर खुश सब मिट्टी के माधो।


मानवता का पाठ भूल कर,

बैठे नफ़रत घृणा शूल भर।


तारे सुध-बुध लगे खोने,

सिसक-सिसक कर लगे रोने।


प्रीति जताए कोई तो अपना,

सच कर दे हरी धरती का सपना।


दुनिया क्या होगी गूँगी बहरी?

आभासी जग की बन प्रहरी।।


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