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Hardik Mahajan Hardik

Tragedy

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Hardik Mahajan Hardik

Tragedy

पर्यावरण

पर्यावरण

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भारी भीड़ आबादी जहाँ अपनी ही चेष्टा में।

निहित करें गौरव वहाँ कोलाहल आवेश में।


चहुँ और वातावरण जहाँ अपना गणवेश में

पर्याप्त निःसंकोच कैसे हो निरन्तर परवेश में


भटक रही नारी चारो और जहाँ कलयुग में।

कैसा सुधरेगा फिर देश हमारा इस ब्रह्मांड में।


वाद विवाद अत्याचार बढ़ रहा अंधकार में।

कैसा यह आज वक़्त फिर क्या प्रकोप में।


आशा चारों तरफ घट रही जहां निराशा में।

बढ़ता देख जा रहा अत्याचार जहाँ लोगों में।


कर रहें क्यूँ लोग इतना अत्याचार नारी में।

घोर अनर्थ हो रहा उन पापियों के प्रकोप में।


कैसे होगी फिर शांति जहां हो अपमान में।

नारी जहाँ अकेली वहां वेश बहरूपियों में।


समाज रहें कैसा फिर अपना ये सुधरने में।

जहां हो नहीं कोई आधार सुधरा समाज में।


कैसे होगा नया सवेरा इसके सामंजस्य में।

प्रकोप ऐसा छाया जहाँ अपने पर्यावरण में।


जल भी बच ना पाता जहां इस अंधकार में।

कैसे करें तुलना फिर इसकी हम भविष्य में।


वृक्ष सूखें काट रहें लोग जहां वन उपवन में।

तरूवर को कैसे छाया मिलेगी वातावरण में।


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