शिक्षा और विद्या
शिक्षा और विद्या
पढ़ पढ़ कर,डिग्री लेकर,
बहुत मचाया हमने शोर,
विधा से हुआ न नाता,
जीवन मे न आया भोर।
अहम ज्ञान का,कुछ अभिमान का,
भटक गया कितना जीवन पथ,
सुखी जब भाव संवेदना सारी,
मानवता का रूक गया फिर रथ।
देवतुल्य ये मानव जीवन,
बना नर कीटक सा अब,
भ्रमण केवल उसका ही,
अंत जहाँ ही होता सब।
देख पाप की मायानगरी,
मौन हुए आज तो सब,
सहभागी हुए पाप के,
विद्रोह न हुआ जब जब।
सुखी करुणा भी सारी,
विधा जो खोई तब तब,
संस्कारो की नींव रूठी,
विधा से न हुआ नाता तब।
चलो सीखे विधा भी अब,
शिक्षा के साथ साथ,
नींव नींव में डाले,
संस्कारो के बीज आज।।