एक धोखा
एक धोखा
एक परत है हर चेहरे पर,
जो खुद से मिलन को रोके है।
इस संसार में, दूजे से नहीं,
खुद से ही मिलते धोखे है।
जितना रूप सुनहरा मनुज का,
उतना ही खुद से दूरी है।
खुद से मिलन की, न जाने क्यों,
इतनी जताई मजबूरी है।
चर्मचक्षु जो दिखाते,
वह सब तो मरीचिका है,
अंतस की जो हुई यात्रा,
आनंद से कण कण भीगा है।
उजला श्वेत अस्तित्व रूह का,
विचार का रूप क्यों काला है,
जो न जाना खुद को इस जग में,
उजले रूप में वहां अंधियारा है।।