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Hem Raj

Tragedy

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Hem Raj

Tragedy

चुनावी मौसम

चुनावी मौसम

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मौसम  आया चुनावों  का देखो,

हर दल जनता को लुभाते  हैं ।

लोक लुभवन घोषणा पत्र तो कभी,

विचित्र सा स्वप्न - डर दिखलाते हैं।


        कुछ का बिगड़ा मिजाज है देखो,

        मय - माया से वोट खरीदवाते हैं।

        सत्ता हो  हासिल जैसे भी  कैसे,

        साम, दाम, दंड ,भेद सभी अपनाते हैं।


धिक्कार है ऐसी जनता को जो,

अपना  जमीर  बेच के खाती है।

किस्मत फोड़ के खुद ही अपनी,

क्यों कहती है?सत्ताएं हमें सताती हैं।


         तब थे देखो  हुए तुम  मदमाते,

         अब सत्ताएं भी हुई मदमाती हैं।

         तुम ने लूटा इनसे तब थोड़ा-थोड़ा

         अब सब ये तुमसे पूरा करवाती हैं।


देश की हो गई है देखो हालत पतली,

जनता - सत्ता अदला-बदली ही चुकाती हैं।

कैसे सुधरेगी हालत देश की तब तक?

जब तक जनता खुद ही न जाग जाती है।


         है किसी भी दल के नेता के यहां,

          नेक न देखो कोई भी इरादे।

         सत्ता को हथियाने के चलते सब,

          करते हैं देखो हर वादे पे वादे।


यह रोग नहीं है मात्र ऊपर ही ऊपर,

इसकी गिरफ्त में है स्थानीय निकाय।

इलाज एक ही दुरुस्त है इसका बस,

कि कैसे ना कैसे जनता जाग जाए।


           सवाल एक ही चूहे - बिल्ली के खेल में,

           बिल्ली के गले में घंटी कौन लटकाए?

           सबकी हो गई है फितरत एक सी आज,

            कैसे न कैसे जान बचे तो लाख उपाए।


देश की किसी को न चिंता है आज,

हसरत है, मेरा तुम्बा पहले भर जाए।

फिर कोई जाति - धर्म मे बांटें हमको,

या फिर खुद ही अपना वोट बिकवाए।


           चुनावी मौसम है भाई हाथ मार लो,

           फिर क्या मालूम फसल आए न आए?

            मतदान है महा पुण्य दान ये इनको,

            कौन समझाए ? कि इसे न बिकवाए।



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