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Hem Raj

Others

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Hem Raj

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दुनियादारी

दुनियादारी

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 बेरुख हो चुकी हैं हवाएं, अब मौसम भी शुष्क हुआ है।

 महफूज रहे जमाने में सब, बस रब से इतनी सी दुआ है।


लोग लगे हैं स्वार्थ साधने, मतलब की ही दुनियादारी है।

मुंह में राम - राम बगल में छुरी, इस दौर में भी जारी है।


रिश्तों की साख है दाव पे, आज कौन किसका पराया है?

दमड़ी का खेला है, वरना सगे को कहे कहां से आया है?


मरणासनी बाप की है कहां? चिन्ता में पिता की माया है।

सेवा की पड़ी ही है किसको? हाथ तिजोरी धन न आया है।


है फुरसत कहां बतियाने की आज? अपनापन ही खोया है।

कांधा देते पुत्र अर्थी को पिता की, पूछो कितना कर रोया है?


बहिर्मुखी जमाने में अब तो, संस्कारों की बात बेईमानी है।

हर रिश्ते - नाते में रहा भरोसा कहां? मन में भरी शैतानी है।


सनातन से रहा सरोकार कहां? आधुनिकता की खुमारी है।

अपनी सभ्यता से रहा प्यार कहां? पश्चिम की हुई पुजारी है।


नई नसलों को नसीहत दो वरना, खतरे में ये दुनियादारी है।

कैंसर है महज जिस्म लीलता, रूह घाती स्वार्थ की बीमारी है।



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