चर्चायें चल रही हैं
चर्चायें चल रही हैं
देश में लोकतंत्र की संवैधानिक विफलता पर
चर्चायें चल रही हैं।
लोग एक दूसरे पर
इल्जाम लगा रहे हैं,
एक दूसरे को जिम्मेदार
ठहरा रहे हैं।
दिलचस्प बात तो ये है कि
सबकुछ राजनीतिमय हो चला है
देश का बौद्धिक संसार
मीडिया जगत
सँस्कृति कर्मी
साहित्यकार
साधु संत मौलवी पादरी ।
कोई ये नहीं कहता है
कि मैं देश के संविधान का
सम्मान करता हूँ।
लोकतंत्र अगर आदमी होता तो
बताता अपना दर्द
जिम्मेदार लोगों के पते
और ब्यवस्था के
अंदर की एक संगठित ब्यवस्था
जो उसका दमन कर रही है
उसके हितआड़ में।
कहता हमारे हित की
आड़ में हमारा सर्वस्व
लुटा जा रहा है
इतिहास भी
भविष्य भी
और हमारी सभ्यता के
सारे सारे के सारे
मापदंड भी।