बहरूपिया भ्रष्टाचारी
बहरूपिया भ्रष्टाचारी
बहरूपिया भ्रष्टाचार दिख रहा चारों ओर है,
धर्म कर्म का काम करते असल में ये चोर है,
इमानदारी का ढोंग दिखाकर नाच नचाते हैं,
धोखा करते इसकी टोपी उसको पहनाते हैं,
ईमान तो सिर्फ इनका यही कमाना रुपिया है,
जो दिख रहा हमें चारों वो एक बहरूपिया है,
अपना उल्लू सीधा करने बातों को घुमाता है,
अपना काम निकले तिगड़म वह चलाता है,
नेता बन सामाजिक प्रगति का राग सुनाता है,
पर नेता बनने के बाद सब कुछ भूल जाता है,
धर्म ईमान के नाम पर गरीबों को लड़वाता है,
लड़ाने के बाद समझदारी का पाठ पढ़ाता है,
सच कहते हमेशा ऐसे लोगों से बचकर रहना,
क्योंकि भ्रष्टाचारी बहरूपिया यह कहलाता है,
घर के बगीचे को वो गरीबों के खून से सींचता है,
खुद रहता ठाठ से गरीबों को चक्की में पीसता है,
दिखावे का ढोल पीटता है हमेशा वह नगर नगर,
अपना उल्लू सीधा कर फिर न जाता उस डगर,
हर जगह इस भ्रष्टाचारी समाज का बोलबाला है,
धर्म की आड़ में बैठा भ्रष्टाचारी बहरूपिया है I
