सच्ची बात
सच्ची बात
अब कोई चेहरा पानीदार नहीं मिलता ।
किसी का गैरतमंद व्यवहार नहीं मिलता ।
बातें करते हैं लोग रामराज्य लाने की ,,
यहाँ तो रावण सा भी किरदार नहीं मिलता ।
बिक जाते हैं लोग दस रुपए की खातिर ।
करने लगते हैं बेईमानी दस रुपए की खातिर ।
जकड़ लिया है रिश्वत ने सबके ईमान को,,
मिट रही है मानवता दस रुपए की खातिर ।
कथनी और करनी में अब समरूपता नहीं।
दोगलेपन की कोई हद भी यहाँ नहीं ।
घूम रहे हैं सभी लोग यहाँ मुखौटा पहनकर ,
असल और नकल की कोई पहचान अब नहीं।
धराशाई है मर्यादा व्यभिचारी हुआ समाज ।
समाज में रहन-सहन का बदल गया रिवाज ।
खुश हैं किसी की पत्नि किसी के पिया के साथ ।
अब रिश्तों से फिसल गई हया और लाज ।
नीयत में हो वफ़ा तो सजा यहाँ मिलती है ।
ईमानदार नीयत सबको यहाँ खलती है ।
सादगी से लोगों का अब काम नहीं बनता ,
सीधा सच्चा रहना यहाँ सबसे बड़ी गलती है ।
सकारात्मकता का ढोल पीटने वाले बहुत हैं ।
बुराई को नजरंदाज करने वाले भी बहुत हैं ।
सच बोलने वाले ही कहे जाते हैं नकारात्मक ,,
सच छिपाकर लीपापोती करने वाले तो बहुत हैं ।