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pratibha dwivedi

Tragedy

4  

pratibha dwivedi

Tragedy

सच्ची बात

सच्ची बात

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अब कोई चेहरा पानीदार नहीं मिलता ।

किसी का गैरतमंद व्यवहार नहीं मिलता ।

बातें करते हैं लोग रामराज्य लाने की ,,

यहाँ तो रावण सा भी किरदार नहीं मिलता ।


बिक जाते हैं लोग दस रुपए की खातिर ।

करने लगते हैं बेईमानी दस रुपए की खातिर ।

जकड़ लिया है रिश्वत ने सबके ईमान को,,

मिट रही है मानवता दस रुपए की खातिर ।


कथनी और करनी में अब समरूपता नहीं।

दोगलेपन की कोई हद भी यहाँ नहीं ।

घूम रहे हैं सभी लोग यहाँ मुखौटा पहनकर ,

असल और नकल की कोई पहचान अब नहीं।


धराशाई है मर्यादा व्यभिचारी हुआ समाज ।

समाज में रहन-सहन का बदल गया रिवाज ।

खुश हैं किसी की पत्नि किसी के पिया के साथ ।

अब रिश्तों से फिसल गई हया और लाज ।


नीयत में हो वफ़ा तो सजा यहाँ मिलती है ।

ईमानदार नीयत सबको यहाँ खलती है ।

सादगी से लोगों का अब काम नहीं बनता ,

सीधा सच्चा रहना यहाँ सबसे बड़ी गलती है ।


सकारात्मकता का ढोल पीटने वाले बहुत हैं ‌‌।

बुराई को नजरंदाज करने वाले भी बहुत हैं ।

सच बोलने वाले ही कहे जाते हैं नकारात्मक ,,

सच छिपाकर लीपापोती करने वाले तो बहुत हैं ।


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