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pratibha dwivedi

Romance Classics

4.5  

pratibha dwivedi

Romance Classics

मजा या सजा

मजा या सजा

2 mins
294


जवानी के मजे लेने के लिए विवाह किया जाता है।

जवानी के मजे लेने के लिए परिवार बढ़ाया जाता है।

बुढ़ापा तो अधिकांश का तन्हा ही गुजर रहा,,

कहीं पत्नी निपट गयी कहीं पति चल बसा।।


बेटा-बेटी जैसे बड़े हुए पढ़ने को परदेस गये,,

वहीं नैन मटक्का हो गया उनका भी घर बस गया,,

पोता-पोती जो हुए तो संदेसा आ गया,,,

कम से कम मन मिले हैं मन को यही ढाँढस रहा।।


एक छत के नीचे जो हैं रह रहे ,,

उनकी अलग ही दास्तां,,

पानी अपने हाथों पीकर गुजारते हैं दिन यहाँ।

विवाह तो सँग ही हुआ पर बुढ़ापा तन्हा कटा !!

न्यारपन में बच्चों के बुढ़ापा सँग ना कट सका।


कहने को तो औलाद है पर साथ उनका न रहा।

बूढ़ा-बूढ़ी साथ रहते ये भी नसीबा न मिला ‌‌।

बरसों गुजारे साथ जिनने बुढ़ापे में जुदा हुए ,,

जीते तो हैं पर सुख नहीं पानी भी खुद से पिये ‌‌।


आंहों से भर गया जीवन काया ने भी साथ छोड़ा ‌।

हर रोज किचकिच है नयी बस जी रहे हैं खाके कोड़ा।

सेवा कोई करता नहीं बस पेंशन सब माँगते।

कबर में है पाँव लटके मरने को दिन ताकते।


विवाह न होता तो सोचते तन्हा बुढ़ापा कटेगा ही।

सेवा किसी की ना मिलेगी दुख काया का भी रहेगा ही 

पर भरे पूरे परिवार में भी पूछता नहीं बुजुर्गों को कोई 

स्वावलंबन थकित हुआ तो बुढ़ापे में आँख रोई।


जवानी का मज़ा देखो सजा में बदल गया।

अपनी ही औलाद से बुढ़ापे में दुख मिला।

हमसफ़र भी ना रहा पहले ही विधाता ले गया।

बुढ़ापे में देख लो तन-मन ये तन्हा रह गया।


एकला आया था मानव एकला ही जायेगा।

ईश्वर ही साथी सच्चा अंत तक निभायेगा।

भरोसे हैं राम के तो उसको ही साथी क्यों ना माने,,

संपूर्णानंद मिले इसी में जीवन का ये सार जानें।।

संपूर्णानंद मिले इसी में जीवन का ये सार जानें।।


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