खोज लो...
खोज लो...
खुद को ढूंढ लूँ काश कभी यूँ ही चलते - चलते
कई सवालों के जबाब ढूंढ लूँ शायद कभी शाम ढलते - ढलते...
कभी मिल जाए काश जो छूट गई है मंजिल मिलते - मिलते
पूरा हो जाए शायद वो ख्वाब जो टूट गया था मुकम्मल होते- होते...
इसी आस में आज तक खुद को रोक रखा है
शायद मेरा नाम भी आ जाए उनके लबों पर ज़िक्र करते- करते...

