तलबगार हो गए...
तलबगार हो गए...
बिना किसी सबूत के ही हम कुछ शिकायतों के शिकार हो गये...
जितना सुकून से रहते थे उतने ही बेकरार हो गये...
जिंदगी की लंबी कतार में बैठे है
बिना पूरी दुनिया देखे ही अंधेरे में रहने के तलबगार हो गये...
जितने भी मिले ज़ख़्म हमें छुपाते रहे फिर भी ज़माने भर में बेकार हो गये...
तोहमत लगाता रहा हर शख्स मुझे पर बिना किसी गलती के ही हम गुनहगार हो गये....
किसी से खुद की हसरतों को पूरा करने की क्या ही उम्मीद कर पाते
जब हम अनचाही ख्वाहिशों के तलबगार हो गये...
