ज़ख्म गहरे करती है
ज़ख्म गहरे करती है
कुछ लम्हे सादिया लगती है
बिन तेरे जिंदगी कहा जिंदगी
लगती है
आफताब की चमक भी अब
फीकी लगती है
चांद की रोशनी भी कहा चांदनी
सी लगती है
जख्मों का भी अब एहसास न रहा
हर दर्द भी अब मामूली सी चुभन
लगती है
जहर भी लबों से लगा ले हम तो
ये जहर भी अब शराब सी लगती है
तुम तन्हाई में जलाते हो तस्वीरे हमारी
ये तस्वीरे भी हमारी अब बोल उठती है
दुआओं मैं भी देते हो बद दुआ हमे
ये बद दुआ भी आसरा कहा करती है
चलो छोड़ो मार डालो हमे खंजर,
दिल के पर उतार दो मेरे
लेकिन ये खंजर भी कहा ज़ख्म
गहरे करती है।

