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pratibha dwivedi

Others

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pratibha dwivedi

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जीवन एक संघर्ष

जीवन एक संघर्ष

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मनचाहा खो रहा है अनचाहा मिल रहा है ।

कभी मन से कभी बेमन से इंसान जी रहा है।


चुनौतियाँ हैं नयी-नयीं सबके अपने हिस्से में ।

सिसकियाँ हैं दबी हुई सबके अपने किस्से में ।


अनभिज्ञ बन कभी निपुण हो हर दांव खेल रहाहै।

जैसे-तैसे जिंदगी की बाजी वश में कर रहा है। 


भरोसा नहीं साँसों का उम्मीद पे दुनियाँ कायम है।

ज़ख्म कोई भी दे सकता अनमोल बहुत मरहम है 


अपनेपन की आस लगाए दिलों को टटोल रहा है 

कभी खुशी कभी ग़म के झूले में मानव झूल रहाहै 


जीवन एक संघर्ष है मानो हर तबके के इंसान का 

जूझकर ही किरदार सजा है सदा ही इंसान का ।


अनुकूल परिस्थितियाँ सदा स्वयं बनानी होतीं हैं ।

अपने हाथ ही जगन्नाथ हैं तकदीर बनानी होती है।



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