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pratibha dwivedi

Abstract Tragedy Classics

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pratibha dwivedi

Abstract Tragedy Classics

कहानी घर घर की

कहानी घर घर की

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घर था बड़ा सलोना भाई-भाई में प्रेम था ।  

कुछ लोगों से देखा न गया षड्यंत्र का खेल रचा ।

राई सी ग़लत फहमी ने पहाड़ रूप धारण किया ।

और देखते ही देखते परिवार का विघटन हुआ ।


ठेस लगी अपनेपन को दिल का चकनाचूर हुआ।

बहस बड़ी संबंध टूटे भावनाओं का मरण हुआ ।

जहाँ मिलन की यादें थी वो घर तो कोसों दूर हुआ 

हिल गई नींव एकता की बैर भाव का चलन हुआ 


गैरों की दखलअंदाजी से रिश्तों का चकनाचूर हुआ ।

अपनों की लापरवाही से रिश्ता दिलों से दूर हुआ 

बैरी के जस भाई हुए रंग लहू का उतर गया ।

एक ही छत के नीचे देखा भाई भाई से बिछड़ गया ।


यही कहानी अब समाज में चरितार्थ भी होने लगी 

गैरों के कारण अपनों की दुनिया ही बिगड़ने लगी 

समझ नहीं पाते हैं लोग अपनों पर शक करते हैं  

अपने ही हाथों अपना घरौंदा तहस-नहस फिर करते हैं 

तहस-नहस फिर करते हैं।


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