मैं मौन होकर बोलता हूँ
मैं मौन होकर बोलता हूँ
वे कह रहे हैं, मैं नहीं मुंह खोलता हूँ
मैं तो अब, बस मौन होकर बोलता हूँ!
जब काल रात्रि जीवन में आयी घनेरी
सब तो अपने थे पर सबने आँख फेरी
मैं नहीं वह पात जो हवा से डोलता हूँ
मैं तो अब, बस मौन होकर बोलता हूँ!!
वे हमसे बातें भी करते हैं बहुत सारी
लगता है कि जैसे बहुत गहरी है यारी
मैं बात बात में ही सब को तोलता हूँ
मैं तो अब, बस मौन होकर बोलता हूँ!!
वे राज लेते हैं सब को अपना बनाकर
अपनी बातें बनाते हैं मुलम्मा चढ़ाकर
मैं तो राज दिल के सभी से खोलता हूँ
मैं तो अब, बस मौन होकर बोलता हूँ!!
हम दिल मिलाते हैं दिल से बोलते हैं
वे बात बात में तरु पात- सा डोलते हैं
मैं सबके जीवन में सुधारस घोलता हूँ
मैं तो अब, बस मौन होकर बोलता हूँ!!
वे खुश नहीं हैं यह बख़ूबी जानता हूँ
मैं तो खुश हूँ खुशियों को पहचानता हूँ
वे सच छुपाके कहते हैं सच बोलता हूँ
मैं तो अब, बस मौन होकर बोलता हूँ!!