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V. Aaradhyaa

Abstract Inspirational

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V. Aaradhyaa

Abstract Inspirational

मन मंदिर में

मन मंदिर में

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कोई ढूंढ रहा उसे मस्जिद तो कोई देख रहा है मंदिर में


भटक रहे सारे यहां वहां वो बसा सबके मन के अंदर में


कैसे कह दूं वो इक भ्रम है जो दिखा ही नहीं कभी मुझे


कहते सुना है राम रहीम वाहेगुरु सारे एक ही पैगंबर में


कायनात उसकी ही सजाई है सब पर ही उसका हक है


धरती उसकी पाताल उसका उसकी ही हुकूमत समुद्र में


कोई चले दो कदम उसकी और वो चार कदम बढ़ाता है


जो पाना उसे तो सिमरन कर वो रहता धरती व अंबर में


दिल न दुखा के किसी का भी सेवा भाव से सबाब कमा


निकालना उसका काम तू जो फंसा हो कैसे भी भंवर में


जीवन जब जीना ही है तो अच्छे करम फिर क्यों न करें


हमको आगे कहीं आना पडे़ बार बार संसार के बवंडर में


       


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