परों की परवाज
परों की परवाज
बहुत बहा चुकी हो तुम आंसू
ना बहाओ इन्हें बेशकीमती हैं, यह,
यह जमाना आंसू नहीं सिर्फ मुस्कान देखता है।
बहुत हो चुके दिल के टुकड़े,
अब और ना तोड़ो यह जमाना
पत्थर फेंकने के लिए शीशे का सामान देखता है।
आए ना यदि मुस्कुराना फिर भी मुस्कुरा दो
यह जमाना मायूसी नहीं सिर्फ प्यार का मुकाम देखता है।
बहुत बंध चुके हो अंजाने बंधनों में
अब खोल दो परों को यह जमाना पंखों की परवाज देखता है।
छू लो अपनी हिम्मत और दिलेरी से आकाश की बुलंदियों को
यह जमाना खुला आसमान देखता है।
बहुत बहा चुकी हो तुम आंसू ना बहाओ
इन्हें वेश कीमती है यह , यह जमाना आंसू नहीं सिर्फ मुस्कान देखता है।