फिर बरसेंगे प्रेम के बदरा
फिर बरसेंगे प्रेम के बदरा
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होली होली होली आकर फिर चली भी गई,
ना कोई हंसी ना कोई हुई ठिटोली।
पिचकारी के प्रेम भरे रंगों की फुहार थम सी गई।
नहीं बरसा कोई भी रंग आसमान से धूल का गुबार उड़ाकर चली गई।
नहीं खत्म हुए ईर्ष्या द्वेष के भाव व्याकुल ता,सी बढा गई।
अगले बरस फिर आएगी होली प्यार के रंग की प्यास बढा गई।
अबकी बार जरूर बरसेंगे प्रेम के बदरा होली प्रेम का खुमार चढा गई।
