मां की ममता
मां की ममता
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सूर्य की पहली किरण का इंतजार करती,
काश आज मिल जाए खुशी का एक क्षण,
फटी गुठलेदार रजाई से मुंह बाहर निकालती,
मार्ग गामी पथिकों को प्रतिदिन निहारती।
द्वार देहरी प्रतिदिन बुहारती,
अभावों से जूझती पीड़ाओं से खेलती,
फटी साड़ी के पैबंदों को देखती,
आंचल में दुध मुहे को लपेटती,
माटी सने लाल को हृदय में समेटती,
वह मजबूर मां खुशी का एक-एक पल सहेजती।
