विशाल हृदय
विशाल हृदय
नहीं कोई ऐसा दानवीर जगत में अपने हीरे माणिक दूजों पर वारे।
सीपी शंख मत्स्य कच्छप सर्प सभी को दे जीवन दान ना अपने जीवन में हारे।
वाष्पित कर शुभ्र जलकण वारिद के हृदय में अपने अस्तित्व को धारे।
वर्षा कर उनसे जल बिंदु कर दे धरा को
हरीतिमा मयी सीपी से मुक्ता बाह्य निकाले।
हो सागर सा विशाल हृदय अगाध गहराई
व्यर्थ न सीमा लांघे।
समेट कर धरा का संपूर्ण नेह निज प्रीति
संपूर्ण जनमानस पर वारे।
नहीं चाहिए किंचित भी उसको पर हित
परोपकार हित सागर विशाल हृदय को धारे।
ब्रह्मवती शर्मा
हाथरस
