बताता हूँ ......
बाद में बात करते हैं ,
बाय |
एक विराम चिन्ह ,
लग जाता है हर बार ,
उसकी और मेरी बातों के बीच ,
और मैं झुँझला जाती हूँ |
सोचती हूँ ....
कम से कम सुन तो लेता ,
मैं क्या कहने आई थी ,
क्या पता ये बात आखिरी हो |
बता दूँगा ....
बाद में बात करते हैं ,
बाय |
ऐसे कैसे झट से कह देता है ?
वो पत्थर दिल इंसान ,
और मैं पगली रोज़ उससे ,
बात करने का बहाना ढूँढती रहती हूँ |
इसलिये नहीं कि मुझे जरूरत है ,
बल्कि इसलिये ताकि ....
उसकी और मेरी दोस्ती ना टूटे ,
वो दिलों वाला बंधन ना छूटे |
बताता हूँ ......
बाद में बात करते हैं ,
बाय |
पढ़कर दिल को धक्का लगता है ,
आँखें नम हो जाती हैं ,
मैं भावनाओं की कद्र करने वाली ,
इतनी बेरुखी सह नहीं पाती हूँ |
लिख देती हूँ झट से झगड़े वाली बातें ,
फिर अगले ही पल सोचती हूँ ,
क्या मैं उससे झगड़ा करने आई थी ?
और मिटा देती हूँ लिखा सब कुछ |
मुझे बदलना होगा .....
अगर उसके साथ चलना है ,
भावुकता को परे रख कर ,
एक कठोर इंसान बनना है |
वरना ये समाज मुझे ,
ऐसे ही दबाता रहेगा ,
इसलिये इस रंग को खुद पर चढ़ा कर ,
अगली बार मुझे भी यही कहना है |
बताती हूँ ......
बाद में बात करते हैं ,
बाय ||