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Shobha Dube

Abstract

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Shobha Dube

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मेरी आवाज़ सुनो माँ

मेरी आवाज़ सुनो माँ

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मेरी कविता का विषय है, अजन्मी बेटी,

वो बेटी जो जन्म तो लेना चाहती है परन्तु उसके

अपने ही उसे जन्म के पहले मृत्यु देना चाहते है।


वह अपने माँ की अंतर्मन की आवाज

बनकर उसे प्रेरित कर रही है,

अपनों से और समाज से लड़ने के लिए

माँ क्या तुमने मेरी आवाज सुनी है ?


में तुम्हारा ही अंश, तुम्हारी ही धड़कन,

तुम्हारी ही रचना, तुम्हारे ही प्यार का एक पल,

ना में तुम्हारी गोद में खेल रही,

ना ही किलकारियाँ भर रही पर

दिल की धड़कन का नाता तो तुमसे ही जुड़ा है।


माना तुम अपनों से ही भयभीत हो,

पर में ना तो विरोध स्वर बोल सकती,

ना ही आवाज है जानती हूँ

तुम्हारा दुःख, मेरे सांझे का दर्द है,

पर क्यों छीन रही मुझ से मेरे जीने का अधिकार,

क्यों नष्ट कर रही मेरा जीवन, सब के दबाव में

आ कर जो बन सकता है किसी घर की रौनक,

जो बन सकता है पत्नी और माँ का

रूप और राष्ट्र की अमूल्य निधि।


तुम अपना हक़ अधिकार सांझे का हक़ बनाओ,

संवेदना का मूल मंत्र सबके ह्रदय में जगाओ माँ,

मेरे भी सपनों को साकार रूप दो माँ,

अपना आशीष मुझे भी दो माँ,

जो सब ने चाहा है भाई के लिए।


तुम अस्तित्व मेरा भी बनाओ सत्य की पैनी धार से,

अपनी अंतर्व्यथा को अपनी शक्ति बनाओ ना माँ,

नहीं तो दुर्गा का अवतार बन जाओ माँ मेरे लिए

गर खो दिया आज तुमने मुझे,फिर कभी ढूंढ ना पाओगी

जिंदगी अभिशाप लगेगी,

छांव में अपने ममता के आँचल में मुझे समेत लो माँ,

मेरी आवाज सुनो माँ।


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