क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया
बहुत दिनों के बाद आज फिर अपने आप से,
बात करने का मौका मिला,
जब बतियाने बैठी खुद से,
प्रतिबिंब आईने में कुछ इस कदर दिखने लगा,
मानो सब हार कर बैठती हूं,
बस टूट कर बिखरी ही नहीं,
हौसला अपना बटोर कर कुछ लिखने बैठी हूं,
कलम का साथ चाहिए,
जज्बात और वह दौर कागज पर उतारने बैठी हूं,
अपने दिल को उस पीड़ा से आज उभारने बैठी हूं,
कोविड-19 का दौर,हर हौसले पर भारी पड़ा,
इंसानियत ने इंसानियत का साथ छोड़ा,
तो कुदरत ने भी कहर भरपाने में कोई कसर न छोड़ी,
हर जगह का नजारा मायूस कर देने वाला था,
कोई किसी का क्या सहारा बने, जब हर कोई बेसहारा था,
दहशत ही दहशत का नजारा, जो खुलेआम था,
कोई व्यक्ति भूख मिटाने को तरस रहा था,
तो कोई ऑक्सीजन के लिए मोहताज था,
अपनों को खो न दें खौफ बेहिसाब था,
जिसने कभी जात - बिरादरी को ऊपर रखा,
मानव इस धरती से लुप्त न हो जाए,
अपनी शाख बचाने के लिए कर रहा हर संभव
प्रयास था,
खोया तो बहुत कुछ हमने इस कोविड के दौर में,
अपनों को तड़पते हुए दम तोड़ते देखा,
कुछ रिश्तो को भी मुंह मोड़ते देखा,
हर तरफ एक शोर उभरते देखा,
न मिलो किसी से दूरियां बढ़ाओ,
मन में उठते तरह-तरह के भवर से जी परेशान था,
एक नजारा इतना खौफनाक श्मशान में भी कतार लगी थी,
यक़ीनन अपनों के लिए बेकरार तरसती हैं आंखें,
आंसुओं के सैलाब से डूबा हर शख्स,
क्या कहिए जनाब, पूरे जहां का यही हाल था,
कब्रिस्तान में भी जगह न थी,
वाह रे जिंदगी तू कितनी बेरहम, तू कितनी बेरहम है,
यकीनन यह सीख हमें कोविड का दौर दे गया,
हां लेकिन अगर इंसानियत का धर्म अगर निभा जाएगा
तो यह जग फिर से रंगों से लहराएगा रंगों से लहराएगा।
