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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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हर वर्ष

हर वर्ष

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लो टंग गया हर वर्ष की तरह

 एक और नया वर्ष दीवार पर।


 हर तारीख का जिक्र है।

 हर माह में प्रवाह हो ।


  बस यही एक फिक्र है।

  मशरूफियत से बदहाल न हो।

  हर पल लाजवाब हो।


  बस इन्हीं बातों का तो जिक्र है।

  इन्हीं बातों की ही फिक्र है।


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