दास्तान ऐ गुजरे साल
दास्तान ऐ गुजरे साल
शीर्षक:- दास्ताँ ऐ गुजरे साल
आओ साथियो तुम्हे बताएं
दास्ताँ ऐ गुजरे साल की....
साल ऐसा न आया था
और न आएगा हर बार ही...
शुरू से गर शुरू करे तो
सबको था इंतजार बड़ा
उन्नीस निकला बड़ा अच्छा
और द्वार पर था अब बीस खड़ा
सब कुछ अच्छा गुजर रहा
और कोरोना से अनजान थे
देश दुनिया के वैज्ञानिक भी
इसको नही पहचानते।
शुरू शुरू में सीखे सारे
शब्द बड़े ही भारी भारी
सेनेटाइजर-क्वारंटाइन
अरु मास्क ने ही थी दुनिया तारी
मार्च गुजरा और अप्रैल निकला
सड़के सारी सुनसान थी
डॉक्टर बन गए देवता और
काढे से सबकी जान थी।
धंधे और व्यापार तो भूल गए
पर रिश्तों के चौखट खुल गए
याद किये उन सभी लम्हों को
जिन्हें बरसो से भूल गए।
पहली बार देखे दृश्य ऐसे
जेल में बंद हो मानव जैसे
चिड़ियाघर देखे सड़को पर
बिना खर्चे रूपये और पैसे।
मजदूर भटके थे दर बदर
तय करने निकले फिर सफर
अरसो बाद महके थे सारे
गांव की गलिया और सूने घर।
पर सबकुछ यह पहली बार था
धंधे चौपट,बिगड़ा व्यापार था।
लाखो जीवन को लील गया
भयंकर कोरोना का वार था।
ट्वेंटी ट्वेंटी की पारी वाकई
तेज गति से बीत गयी
जो बीत गयी सो बात गयी
अब शुरू करे हम रीत नई।
अपने जीवन के काल में
इस साल को भूल जाना होगा
भूलकर भी जो सीखे है
उसको जरूर भुनाना होगा।
बस अंकों का तो फेर है
इक्कीस आने में न देर है
उजाले की है दस्तक अब
छंटने वाला अंधेर है।