मजदूर
मजदूर
मिट्टी से जन्म लेकर, हम मिट्टी में मिल जाते है।
जीवन के संघर्षो से दिन रात लड़ते जाते है। दो जून की रोटी की जुगत में हम रोजी को भटक जाते है। घर बार छोड़कर घर बार के भरण पोषण को जाते है। मिट्टी से खड़े हुए मजदूर और मिट्टी में मिल जाते है।। देश की नींव का पत्थर मजदुर वर्ग ही होते है। अमीर वर्ग के सुख भोगो को अपने कंधो पर ढोते है।
दिन रात पसीने की खाद से हम मेहनत का बीज बोते है। अधिकार हमे न मिल पाया न सपने कोई संजोते है। देश की प्रगति रथ के पहिये मजदूर वर्ग ही तो होते है।। बच्चे हमारे अभावो में ही जीवन अपना बिताते है। माँ-बाप अभागे ऐसे जो दुःखो के अश्क पिलाते है।
हुनर भरा है भुजबल में पर सुख कमा न पाते है। परिश्रम की दौलत से ऊँचे महल बहुत बनाते है। पर महलो के सुख को हम कभी भोग न पाते है। अभावो से नाता गहरा है नाता यही निभाते है। मजबूर है मजदूरी से ही जीवन अपना बिताते है।