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संजय असवाल "नूतन"

Drama

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संजय असवाल "नूतन"

Drama

घरेलू औरतें ( दो)

घरेलू औरतें ( दो)

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घरेलू औरतें

रोज मार खाती हैं,

कभी तानों से,

कभी हिकारती नजरों से,

प्रताड़ित और सताई जाती हैं,


ये प्रताड़ना शब्द 

उसके लिए बस आम है,

वो फिर खड़ी होती है 

अपना पल्लू 

कमर में ठूंसे 

काम में लग जाती हैं, 


करना भी तो उसी को है, 

वो सहेज लेती है 

हर उस मार की निशानियों को, 

अपने बदन पर यहां वहां,

और चेहरे पर 

उठे दर्द के भाव को 

छुपा लेती हैं, 

अपनी झूठी मुस्कान के पीछे।


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