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Krishna Bansal

Drama Inspirational

4.7  

Krishna Bansal

Drama Inspirational

बुलबुला पानी का

बुलबुला पानी का

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सितंबर माह का 

तीसरा सप्ताह 

दिन का तीसरा प्रहर 

धूप खूब खिली हुई।


पिछले दो महीने 

बारिश का मौसम था 

सभी पेड़ पौधे एकदम

हरे-भरे निखरे-निखरे। 

अचानक आकाश पर 

गहरे बादल छाए

दस मिनट में ही 

रिमझिम बरसने लगे।


मैं पहले से ही 

खिड़की के पास बैठी 

प्राकृतिक सौंदर्य का 

रसपान कर रही थी 

वर्षा आने पर मेरा 

रोम रोम खिल उठा 

मन झूम उठा।

अंतर्मन में प्रसन्नता की लहरें 

हिलकोरे मारने लगीं।


तेज़ वर्षा के कारण 

लॉन के कोने में 

एक गड्ढे में पानी भर गया

जहां पानी पर बारिश की 

बूंदे गिर रही थी 

वहां पानी के बुलबुले बन रहे थे

देखते देखते पचासों बुलबुले

ऊपरी सतह पर तैरने लगे।

पानी का बुलबुला कुछ देर

तैरता फूट जाता 

पानी में विलीन हो जाता 

बहुत देर तक इस दृश्य को 

तन्मयता से आत्मसात करती रही।


तन्द्रा तब टूटी जब 

बारिश बंद हो गई 

और सभी बुलबुले 

पानी में विलीन हो गए।

 

मन में विचार उठा 

क्या मानव भी 

पानी के बुलबुले की तरह नहीं है?

मानव स्वयं को 

कितना महत्व देता है 

सदैव अमर रहना चाहता है 

अगले जन्म की बातें करता है। 

पाप और पुण्य की गाथा 

पूर्व व भविष्य जन्मों के 

साथ जोड़ता है।


क्यों नहीं सोचता

एक दिन 

पानी के बुलबुले की तरह 

अपनी आयु पूर्ण कर

अस्तित्व में मिल जाना

उसकी नियति है।


फिर कोई जीवन रूपी बूंद 

अस्तित्व में गिरेगी

नई उत्पत्ति होगी 

नया वातावरण 

नए रिश्ते 

नए संस्कार लेकर 

पैदा हो जाएगी।


इतनी सी कहानी है 

शेष बातें हमने अपने 

स्वार्थ व सुविधा 

अनुसार गढ़ ली हैं।



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