सब बेकार
सब बेकार
कुछ भी
कहना कहीं पर
सब बेकार ही होता है।
दिल के
पास हो कोई या हो दूर
दर्द एक सा ही सो
सब बेकार ही होता है।
ख्याल
रखने की दुनिया की
बड़ी बड़ी बातें
बिना कहे कौन साथ दे,
सब बेकार ही होता है।
बोल उसका
मीठा हो या कड़वा
राब्ता झूठ हो या लिए हो
अपना आधा अधूरा सच
सब बेकार ही होता है।
तख्त
या ताज का होना
दावों और इरादों का होना
इस चालबाज़ दुनिया में
सब बेकार ही होता है।
उगता सूरज हो
या डूबता तारा हो
एक आखिरी सलाम के बाद
सब बेकार ही होता है।
मगर काम का गर कुछ है तो
बस जरा ऐतबार है
वो भी जो अगर
ख़ुद पर होता है।