STORYMIRROR

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Abstract Inspirational

4  

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Abstract Inspirational

मिथ्या कबहूं न फूलइ फरइ,

मिथ्या कबहूं न फूलइ फरइ,

1 min
282

त्रिमाचों की सरकार तमाचों पर आ गयी,

यह लुटेरों की सरकार मिलबांट के खा रही।

यहां देखो न शहर बदला कोई न गांव बदला कोई,

मिथ्या राग अलापा हर कोई न फाग बदला कोई।


मैं व्रतांत नहीं सुनाता,इतिहास नहीं दोहराता,

हालात तो सुधारो,मिथ्या परिहास नहीं बनाता।

लोकतंत्र की राजनीति में गरीब से मतलब नहीं है,

वोटतंत्र में जातिवाद धर्मवाद का कलरव सही है।


बहुत सोच लिये नीति और अंजाम,

अब मिथ्या संघर्ष दे पूर्ण विराम।

हम सत्य कहें तो तुम डांटो,

तुम मिथ्या देश को बांटो।


देख लो तुम वह अब घबराने लगा है,

मेरे अस्फुट व्यंगों से चोट खाने लगा है।

मिथ्या कबहूं न फूलइ फरइ,

मूर्ख ह्रदय न कबहूं चेतइ करइ।


हम जानते है मिथ्या तेरी चतुराई,

अब न लौटेगी सत्ता तेरी प्रभुताई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract