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Yukta Pareek

Abstract

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Yukta Pareek

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एक रंग बिरंगी पतंग...

एक रंग बिरंगी पतंग...

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एक रंग - बिरंगी पतंग एक नया सा समां बांध रही है,

आसमां में एकदम मस्ती से 

झूम रही है,

ना किसी बात की परवाह है उसे।

ना किसी चीज़ की खबर है उसे।

उसे ना मंजिल का पता 

ना रास्ते का,

वो बस उड़ती रहती है,

हवाओं के साथ खेलती रहती है।

घटाओ के साथ झूमती रहती है।

उसे बस उड़ना है,

हवाओं के साथ।

जाना है बादलों के संग

वो उड़ती जाती है,

पर वह भी बेखबर है,

यहीं सोचती है कि बादल उसके साथ है।

पर उसे क्या मालूम की

बादल उसके साथ तो हैं,

लेकिन साथी नहीं।

कोई साथ भी है,

पर साथ नहीं,

शायद यहीं सोच कर इठला रही है कि,

थोड़े वक़्त के लिए ही सही 

कोई तो साथ है।

वो तो बस कोई दूर खड़ा,थामे

है उस पतंग की डोर।

उसे ना होश अगले ही पल का,

ना जाने कब उसकी डोर 

से वो अलग हो जाए।

ना जाने कब उसका आसमां बदल जाए

पर फिर भी वो पतंग मुस्कुरा रही है,

शायद यही तरीका हो,

नई मंजिल की तरफ जाने का 

दूर किसी नए आसमान में जाने का।

शायद ये उड़ान उसकी आखिरी ना हो,

वो वापस झूमेगी आसमां में,

एक नई डोर के साथ।।

एक नई उमंग के साथ।।


 


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