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Yukta Pareek

Abstract

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Yukta Pareek

Abstract

आंखें कुछ कहना चाहती हैं!!

आंखें कुछ कहना चाहती हैं!!

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ये झुकी झुकी आंखें बहुत

कुछ कहना चाहती है,

दिखाए हर पल नया रंग,

ये चुप नहीं रहना चाहती है।


कभी अपने में दर्द छुपा के, 

कभी खुशी छुपा के,

ये आंखें कुछ कहना चाहती है।


कभी आंखें मासूमियत दिखाए,

कभी आंखें इंसानियत दिखाए,

कभी अपने में लाखो सपने सजाए,

ये आंखें कुछ कहना चाहती है।


कभी आंखें विश्वास झलकाती है,

कभी सही- गलत को परखती है,

कभी अपने में लाखो सावन सजाए,

ये आंखें कुछ कहना चाहती है।


कभी चांद बनकर जगमगाए,

और कभी तारा बनकर टिमटिमाए,

आंखो में मा - सी ममता छिपाए,

ये आंखें कुछ कहना चाहती है।


कभी दिल का आइना दिखाए,

कभी चेहरे के कई रंग दिखाए,

अपने में अनगिनत बातें छुपा के,

ये आंखें कुछ कहना चाहती है।


कभी अपने में प्रेम का रंग बसाए,

कभी अपने संग मीत का संग दिलाए,

ये आंखें प्रेम गीत गाना चाहती है,

ये आंखें कुछ कहना चाहती है

ये आंखें कुछ कहना चाहती है।


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