वजूद ज़िंदगी का
वजूद ज़िंदगी का
दर्द की इंतेहा आँखों की गहराइयों में है
कुछ सवाल छुपे हुए, अतीत की परछाइओं में है।
हर घाव हँसकर पूछता है, वजूद तेरे होने का ?
क्यों है डर हर कोने में, सब कुछ पाकर खोने का ?
जिंदगी भी अजीब है, हर बार एक नया बहाना ढूंढ लेती है।
सलाम है उस जज्बे को, जो सब कुछ भूलकर फिर नयी
मंज़िल तलाश कर लेती है।
लोग सोचते ही रह जाते हैं ऱाज तेरी हिम्मत का
और तू है कि फिर मुस्करा के आगे कदम बढ़ा लेती है।