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Pratibha Bilgi

Abstract

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Pratibha Bilgi

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मम्मी का टाइपराइटर

मम्मी का टाइपराइटर

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आज मम्मी के कमरे में 

झाँकने का मन हुआ अचानक 

दिल भर आया यादों में 

आँखों से आँसू गए छलक 


कमरे के दायें कोने में 

बैठा करती थी हमेशा वह 

खोकर खुश रहती खयालों में 

जैसे खास एक पसंदीदा जगह 


हम थे उनकी दुनिया में 

फिर भी दूरियाँ थी थोड़ी 

माँ बच्चों के रिश्तो में 

पर बँधी एहसासों की कड़ी 


व्यस्त रहती ज्यादातर लिखने में 

शायद भावनाओं की माला पिरौती

मुख्य भूमिका इस कहानी में 

मम्मी के टाइपराइटर की रहती।


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