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Neeraj pal

Abstract Inspirational

5.0  

Neeraj pal

Abstract Inspirational

प्रदूषित-विचार।

प्रदूषित-विचार।

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पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का खतरा, छीन लिया सुख चैन है।

बढ़ता प्रदूषण विकराल रूप बन गया, निहित स्वार्थ की देन है।।


धन कमाने की ललक में, भविष्य के परिणाम की खबर नहीं है।

औद्योगीकरण के विकास के खातिर, प्रकृति से कोई सरोकार नहीं है।।


आतुर है उपलब्धियों को पाना, प्रतिष्ठा की होड़ लगा कर बैठा।

 गैरों से ऊँचा दिखने हेतु ,पागल और बेचैन बन बैठा।


 पुरुषार्थ और प्रतिभा को भूल बैठा, छल-फरेबी का है रुख अपनाया।

असामाजिक घृणित काम ही भाता, फिर भी मन को चैन न आया।।


 विचारों को ही प्रदूषित कर डाला, गोले-बारूद से काम चलाया।

बेखबर दूरगामी प्रभाव से, प्रलय कांड का घर है बनाया।।


भूल गया अहिंसा, प्रेम, दया को, अमूल्य धरोहर जो सौंपी प्रभु ने।

" संतोष परम धन, को जो सीखा, जीत लिया संसार उसने।।


 चाहत सीमित जब तक न होगी, सुख-शांति तेरे पास न होगी।

" नीरज, सुखमय जीवन तब होगा, परसेवा की जब नियत होगी।।


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