घृणित नाटकीय मंच के पर्दों को हम उठाकर ही रहेंगे ! घृणित नाटकीय मंच के पर्दों को हम उठाकर ही रहेंगे !
स्वर्णिम पल तप कर अनुभव की भट्ठी में। स्वर्णिम पल तप कर अनुभव की भट्ठी में।
और तीस साल इंतजार कर रे कलम, सब्र कर। और तीस साल इंतजार कर रे कलम, सब्र कर।
सोचें - क्यों आजकल कुछ पत्थर से हो गए हम? सोचें - क्यों आजकल कुछ पत्थर से हो गए हम?
श्वासों की आयु है सीमित ये नयन भी बुझ ही जाएँगे ! उर में संचित मधुबोलों के संग्रह भी श्वासों की आयु है सीमित ये नयन भी बुझ ही जाएँगे ! उर में संचित मधुबोलों के...
सोशल मीडिया को मेरा तहे दिल से शुक्रिया शुक्रिया। सोशल मीडिया को मेरा तहे दिल से शुक्रिया शुक्रिया।