हमसफ़र
हमसफ़र
थोड़े से रीति रिवाज
थोड़ी सी औपचारिकताएं
और जुड़ जाते हैं।
दो अस्तित्व
बंध जाते हैं
एक बन्धन में
जीवन भर के लिये
केवल शरीर ही नहीं
आत्मा के स्तर तक।
बन जाते हैं सोलमेट
हमसफ़र
जीवन के
दुर्गम पथ पर
चलते हैं
थाम कर
हाथ मे हाथ
हर सुख दुख में
निभाते हैं साथ
क्योंकि
उनका रिश्ता
नहीं होता
केवल कुछ पलों
दिनों या
सीमित समय तक का
अद्भुत होता है
उम्र के
हर मोड़ पर
देना साथ
ढूंढना झुर्रियों की
रेखाओं में
विगत यौवन के चिह्न
जो बन चुके होते हैं
स्वर्णिम पल
तप कर
अनुभव की भट्ठी में।

