उपांत
उपांत
रे कलम,
सुखने मत देना अपनी स्याही को
बेवजह बहने भी न देना
अब के समय पन्ने भी तेरे खिलाफ़ हैं
अपनी राय लिख मत देना
उपांतों मे डाल दी जायेगी
तेरी पूरी मेहनत पे,
पानी फेर दी जायेगी
बदनामी रंगें बोल दिये जायेंगे
तेरी गम्भीरता का मजाक उड़ाये जायेंगे
माना की तू भी एक तलवार है
या शायद कभी हुआ करता था
पर जरा देख,
तेरी पूरी नस्ल ही उनका प्यादा है
देखा नहीं,
उन्हों ने इतिहास को भी छेड़ा
एक पन्ना भी न छोड़ा
जब वे इतिहास को भी
पन्नों के उपांत मे सीमित कर सकते हैं
तो सोच,
तेरी लिखावट का क्या हश्र करेंगे
उपांतों पे भी उपांतरित कर लिखेंगे
इसीलिए कहता हूँ सब्र कर
अभी हाल ही मे,
सत्तर साल हुए हैं आजादी के
और तीस साल इंतजार कर
रे कलम, सब्र कर।