पतझड़
पतझड़
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पतझड़ के दिन
जंगलें कहानीयाँ सुनाती हैं
कहानी बिछड़े प्रेमियों की
एक दुसरे से दुर दो कपोतों की
जो पिछले साल से
मिलने हमजोली से
प्रतीक्षारत हैं
वसंत के लौटने के दिन की
वो कहानियाँ देखो घट रहे हैं
पतझड़ के दिन
झरने कवितायें दोहराते हैं
कवितायें भँवरों की
उनकी प्रेमिकाओं, फूल-कुसुमों की
जो वसंत की आड़ में
प्रेम आलाप की ताक में
प्रतीक्षारत हैं
नई कलियों के खिलने की
वो कवितायें बोले जा रहे हैं
पतझड़ के दिन
वसंत के साथ देखो लौट आये हैं।