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Dayasagar Dharua

Abstract

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Dayasagar Dharua

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आसान नहीं जिंदगी

आसान नहीं जिंदगी

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कब कैसे पेड़ की पत्तियाँ झड़ जाएँ

कब तोड़ जाएँ टनियाँ उन्मत्त हवाएँ

और टूट बिखर जाएँ चिड़ियाँ की बसाएँ

यूँ आसान नहीं जिंदगी जीना,

खड़ा रहना होता है ज़मीन पे जड़ जमाएँ।


है देता आ रहा सबूत ये ज़माना कब से

के टिकना है मुमकीन यहाँ मजबूत जड़ से

बदकिस्मती से न कट जाए वो जड़ चिंटीओं से

यूँ आसान नहीं जिंदगी,

रहना सम्हल के होता है बदलती किस्मत से।


कहते हैं के किस्मतें बदलते हैं टूटते तारे

होतें हैं मन्नतें पुरे अगर पड़जाए उन पे नज़रें

किसी को टूटते देख क्या कभी होगें चाहते पुरें ?

यूँ आसान नहीं जिंदगी जीना,

वे टूटते हैं ताकी उन्हे देख कर दूसरें सुधरे।


फिर भी टूटते तारों से क्यों तोलें किस्मत

तारों को निहारने से जब मिल जाए फुरसत

थोड़ी कर लो गुजरे दिनों से ज्यादाआज मेहनत

यूँ आसान नहीं जिंदगी जीना,

खींच न दे जड़ें कहीं तारों को निहारने की लत।


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