किताब का सुसाइड नोट
किताब का सुसाइड नोट
निर्जन उदास विशाल
किताबालय में
एक घटना घटी थी
किताबों के बीच
एक किताब मरी पड़ी थी
वह विशुद्ध आत्महत्या थी
सबुतन सुसाइड नोट छोड़ी थी !!
मैं किताब हूँ
मैं ज्ञान वाहिनी हूँ
मैं मनीषी चिंतन चेतना हूँ
मैं बदलाव का दस्तावेज हूँ
मैं विकास साधना की यात्रा हूँ।।
मैं किताब हूँ
मुझमें हर रस हर विधा भंडार है
मुझमें सम्माहित किस्से हजार हैं
चाहे कंचन काया का सौंदर्यबोध हो
चाहे कर्मयोग का जटिल ज्ञानबोध हो
मुझमें मिलेगा , मुझसे मिलेगा ।।
मैं किताब हूँ
फिर भी आज
अब अलग थलग पड़ी हूँ
कब से एक कोने में खड़ी हूँ
नजरें तरस जाती पाठक देखने को
मजबूर हूँ अपनी उपेक्षा झेलने को।।
मैं किताब हूँ
अवसाद है विषाद है
तनाव है प्रमाद है
अब अस्तित्व का सवाल है
किसने सोंचा ?
क्यों मेरा यह हाल है ?
मैं किताब हूँ
कितने सपने साकार कराए
कितने नए रहस्य बताए
असंभव को संभव बनाना सिखाया
आवागमन का रहस्य समझाया
ज्ञान को विज्ञान बनाया
लघुता से प्रभुता मिली
प्रभुता से बने प्रभुदूत
गवार को समझदार बनाया
चाँद तारों की सैर कराई
मुठी में दुनिया भर आई ।।
मैं किताब हूँ
फिर भी मुझसे
बेरुखी बेवफाई
अब मैं दुनिया छोड़ चली
इसका सारा दोष
इंटरनेट और मोबाइल को दे चली
जिसको मेरी सुसाइड नोट मिले
बचे खुचे किताब के जा गले मिले ।