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VIVEK ROUSHAN

Abstract

3.7  

VIVEK ROUSHAN

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सफर लम्बा है मेरा

सफर लम्बा है मेरा

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सफर लम्बा है मेरा कि मेरा रास्ता अलग है

रात हौसलों ने मुझसे कहा तेरा फैसला अलग है

 

फिर रहा हूँ दर-बदर जाने किस ख्याल में गुम

सब देखते हैं मुझे जैसे मेरा चेहरा अलग है


माँ का प्यार तो जगजाहिर है दिख जाता है

पर बाप के प्यार करने का थोड़ा तरीका अलग है


पढ़ा सबको सुना सबको फिर ये एहसास हुआ

मिरो-ग़ालिब तो ठीक हैं पर एलिया अलग है


कौन हमें मशवरा देता हम किसे दास्ताँ सुनाते

सभी का मसअला अलग है तज़रबा अलग है. 


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