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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Inspirational

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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Inspirational

थोपी हुई विचारधारा

थोपी हुई विचारधारा

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सदियों से थामी 

उसकी चुप्पी 

टूट गई इक दिन 

जैसे जागी हो 

गहरी निंद्रा से 


और 


चढ़ा कर शब्दों की 

प्रत्यंचा 

जब वो चीखी 

तो 

खन्ड खन्ड हो

बिखर गई चहूँ ओर 

थोपी हुई 

हर विचारधारा 


झोंककर चूल्हे की अगन में 

अपनी लाचारी 

वो उठ खड़ी हुई

तो 

धराशायी हो गिर पड़ी

थोपी हुई 

हर विचारधारा 


>

शान्त पड़े दरिया में 

जब तबाही मचाने लगीं 

विद्रोह की लहरें 

तो 

चित होकर गिर पड़ी

थोपी गई 

हर विचारधारा 


पहचानकर 

अपना अस्तित्व 

लड़ने लगी जब

आंधियों से भी वो 

पाने को अपना अधिकार 

तो 

मूर्छित हो गिर पड़ी

थोपी गई 

हर विचारधारा ....


हां !

हर वो विचारधारा 

जो थोपी गई थी 

सदियों से 

जबरन ही........



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