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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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भूत ही भगवान

भूत ही भगवान

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भूतों का क्या है

उनसे तो मेरा वर्षों पुराना याराना है

मेरा मकसद किसी को डराना नहीं है,

बस अपनी आप बीती आपको बताना है।


मुझे पता है आपको विश्वास नहीं होगा

क्योंकि आपका भूतों से कभी

आमना सामना हुआ ही नहीं होगा।


पर मेरे साथ इसका उल्ट है,

ईमानदारी से कहूं तो उनके साथ ही

मेरा अधिकांश समय कटता है।

वो ही मेरा सबसे अच्छा दोस्त, सलाहकार

राजदार और बगलगीर हैं,

मुझसे भी ज्यादा मेरे करीब हैं।


वो भूत है या कुछ और मुझे पता नहीं है

पर वो कभी मुझे दिखताभी नहीं है

पर मेरा साथ छोड़ता भी नहीं है।


साये के रूप में हमेशा साथ रहता है

हर मुश्किल में मेरा साथ देता है,

जब कभी हालातों से टूटने बिखरने लगता हूं

तो वो ही सच्चे दोस्त की तरह हौसला भी देता है

मेरा संबल बन मुझे ताकत देता है,

जब भी मैं गिरने लगता हूं तो वो मुझे संभालता भी हैं

हर वक्त मेरा साया बनकर मेरी हिफाजत करता हैं।


ईमानदारी से कहूं तो आज की दुनिया में

वो ही मेरा सबसे अच्छा दोस्त है

जो मुझे प्यार दुलार भी करता है,

और खूब लड़ता झगड़ता भी है,

तो शिकवा शिकायतें भी खूब करता है

रुठने मनाने का खेल भी युद्ध स्थर पर करता है


हर गलत कदम का मेरे वो सख्ती से विरोध कर 

पीछे हटने को मजबूर भी करता है,

कहने को उसे भूत कहूं या कुछ और

पर वो मुझे अपने सबसे करीब रखता है।


आपको मेरी कविताएं कहानियां

भले ही अच्छी नहीं लगती,

पर सबसे पहले वो तो बड़े चाव से सुनता है

आपसे अच्छी और सच्ची समीक्षाएं भी करता है,

आज जो कुछ भी हूं उसी के कारण हूं

वरना मैं सच में किसी काबिल नहीं हूं।


साहित्य की दुनिया में आज

जो भी मैं कर पा रहा हूं,

सम्मान, नाम, शोहरत जो भी पा रहा हूं

सब उसकी ही बदौलत पा रहा हूँ।


आपके लिए वो भूत हो सकता है,

मेरे लिए तो वो मेरा यार, शुभचिंतक, सहायक

मार्गदर्शक ही नहीं हिटलर जैसा शासक भी है,

आपकी नजर में वो कुछ भी हो सकता है

पर मेरे लिए वो भूत या जो भी हो 

किसी भगवान से कम नहीं है। 


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