आँखें नम और दिल कुछ भारी भारी
आँखें नम और दिल कुछ भारी भारी
आँखे नम और दिल कुछ भारी भारी है,
क़ैद से निकलूँ पर कुछ ज़िम्मेदारी है।।
हल्की हल्की बारिश में ही भींग गई,
ये मेरे ज़ज्बात की दुनियादारी है।।
यारा..उसने एक दफा ही बोला था।
तब से मन की महकी ये फुलवारी है।।
चाकू छुरियाँ तन को घायल करती हैं
मन पर अल्फ़ाज़ों हिस्सेदारी है।।
ख़्वाबों का पलकों तक आकर रुक जाना।
रब ने कैसी बख़्शी ये दुश्वारी है।।
कब से ठहरा एकही मंजर आँखों में,
आँखों से बरसात अभी भी जारी है।।