STORYMIRROR

Arti jha

Abstract

4  

Arti jha

Abstract

आँखें नम और दिल कुछ भारी भारी

आँखें नम और दिल कुछ भारी भारी

1 min
484

आँखे नम और दिल कुछ भारी भारी है,

क़ैद से निकलूँ पर कुछ ज़िम्मेदारी है।।


हल्की हल्की बारिश में ही भींग गई,

ये मेरे ज़ज्बात की दुनियादारी है।।


यारा..उसने एक दफा ही बोला था।

तब से मन की महकी ये फुलवारी है।।


चाकू छुरियाँ तन को घायल करती हैं

मन पर अल्फ़ाज़ों हिस्सेदारी है।।


ख़्वाबों का पलकों तक आकर रुक जाना।

रब ने कैसी बख़्शी ये दुश्वारी है।।


कब से ठहरा एकही मंजर आँखों में,

आँखों से बरसात अभी भी जारी है।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract