हमीं सब करें तो ख़ुदा किसलिए है
हमीं सब करें तो ख़ुदा किसलिए है
न हो साथ फिर, मशविरा किसलिए है।
मेरे दोस्त खाली, दुआ किसलिए है।।
अगर वार करना है छुपके-छुपा के।
ये झूठी इनायत बता किसलिए है।।
जिसे भूल जाने में, सदियाँ गुजारीं,
वही ज़ख़्म फिरसे मिला किसलिए है।।
जो कल ही मुझे देखकर मुस्कुराया,
वही आज मुझसे ख़फ़ा किसलिए है।।
है लाखों अदाएँ यहाँ से वहाँ तक,
वो आख़िर मुझी पर फ़िदा किसलिए है।।
जिसे ज़िन्दगी हार जाने की ज़िद हो,
वहाँ फिर दवा या दुआ किसलिए है।।
जहाँ झूठ पर तालियाँ बज रही हों
वहाँ सत्य कब से खड़ा किसलिए है।।
जिसे आजमाना हो आकर बताए,
यूँ पर्दे के पीछे छुपा किसलिए है।।
चलो फ़िक्र छोड़ें, अभी से,यहीं से,
हमीं सब करें तो ख़ुदा किसलिए है।।