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Arti jha

Tragedy

4.8  

Arti jha

Tragedy

आज घर-घर साँप बिच्छु पल रहा है

आज घर-घर साँप बिच्छु पल रहा है

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झूठ आकर सत्यता को छल रहा है।

आज घर-घर साँप बिच्छु पल रहा है।


प्रेम कोने में कहीं मूर्छित पड़ा है,

और नफ़रत सर उठाए आ खड़ा है।

द्वेष की अग्नि में सब कुछ जल रहा है।

आज घर -घर...........


मौन होकर सब तमाशा देखते हैं,

और फिर अपनी बिसातें फेंकते हैं

काल भी निस्तब्ध है क्या चल रहा है।

आज घर घर..........।


कोई ऊँघा है,कोई निश्चेष्ट है।

भान है सबको, वही तो श्रेष्ठ है।

सबके मन मे कुछ कुनीति चल रहा है।

आज घर घर............


ध्यान से देखो कोई तो रो रहा है,

पूर्वजों का धैर्य भी अब खो रहा है।

ये नियति का चक्र कैसा चल रहा है।


आओ फिर से प्रेम की बंसी बजाएं।

हम अहिंसा के मधुर संगीत गाएं।

फिर मनाएं सूर्य को,जो ढल रहा है।

आज घर-घर..........।


हो मनुजता,प्रेम हो,सद्भावना हो।

हर नगर में प्रेम की स्थापना हो।

मात दें हम,विधि जो चालें चल रहा है।

आज घर-घर साँप बिच्छु पल रहा है।


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