जीवन क्या है भूल-भुलैया...
जीवन क्या है भूल-भुलैया...
जीवन क्या है भूल भुलैया,या कर्मों का नाता है।
कौन समझता मन की तड़पन, कौन पीर सहलाता है।
प्रतिदिन नमन किया करते हैं,सूर्य उदय जब होता है,
लेकिन अस्त उसी का होना कहाँ किसी को भाता है।
फूँक मारकर दीया बुझाते,मैने सबको देखा है।
लेकिन अँधियारे में आकर, दीपक कौन जलाता है।
अजब रीत है इस दुनिया की,हृदय तोड़ना,ठुकराना।
किंतु किसी ठुकराए जन को,कौन सहज अपनाता है।
मन की व्यथा रहे मन मे ही,ऐसा धैर्य विधाता हो।
फूट-फूट कर रोने से भी,कौन किसे अपनाता है।
निर्धनता ऐसा दीमक है,जीवन अल्प बनाता है
तन की कोमलता से लेकर स्वाभिमान तक खा जाता है।
हार मान जब बैठे कोई,आगे बढ़कर अंक भरो।
पलभर का यह प्रेम हृदय में,दूना जोश जगाता है।
पथ भरमाए,खेल दिखाए निर्मोही यह मोह बड़ा।
खींच तेरी चरणों से भगवन,इस जग में ले आता है।