सिसकियाँ मैं दबाती रही रात भर.
सिसकियाँ मैं दबाती रही रात भर.
सिसकियाँ मैं दबाती रही रात भर।
ग़म की आहट छुपाती रही रात भर।।
एक धागे में खुशियों की कलियाँ पिरो
सूनी लड़ियाँ सजाती रही रात भर।।
रात के ख़्वाब को अपनी धड़कन बना।
आईने को सुनाती रही रात भर।।
एक बेबस कली को नज़र में छुपा
दुश्मनों से बचाती रही रात भर।।
जीतने की लगन प्यार को सौंपकर
हार अपनी मनाती रही रात भर।।
एक मासूम सौदा कोई कर गया,
ख़ुद पे ख़ंजर चलाती रही रात भर।।